भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

/ बेढब बनारसी

2,261 bytes removed, 21:06, 21 मई 2010
पृष्ठ से सम्पूर्ण विषयवस्तु हटा रहा है
{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=बेढब बनारसी}}{{KKCatKavita}}<poem>1. वन्दना शारदे आज यह वर दे नैनों से भी तीखीतर होशिशुओं सी सर्वथा निडर हो व्यंग-विनोद- हास का घर हो तुझसी ही हे देवि अमर हो इस निब-वालीको मैं जैसा चाहूँ -- वैसा कर देइसमें रंग भरा हो कालाकिन्तु जगत में करे उजाला जहाँ बनज हो रोनेवाला वहाँ गिरे यह बनकर पाला फाड़े यह पाखण्ड -- दंभके ताने हुए जो परदेजैसी टेढ़ी अलकें काली मानों ऐंठी कोई ब्यालीहो यह टेढ़े शब्दों वाली किन्तु नहीं हो विष की प्याली इससे सुधा-बूँद बरसा अधरों पर सबके धर दे भरा रहे रत्नाकर इसमें रसका भर दे सागर इसमें पाएँ लोग चराचर इसमें मस्ती के हो आखर इसमें जग को करदे मादक, इसमें वह मादकता भर देचूमे क्षितिज और अंबरको नक्षत्रों के लोक प्रवरको करै पराजित यह निर्झर को छूले मानव के अन्तर को उड़े कल्पना के समीर पर इसको ऐसा करदेमूर्ख मनुज की वाह-वाह सेबिना ह्रदयवाली निगाह सेपैसों की स्वादिष्ट चाह से इन तीनों सागर अथाह से इक्यावन नम्बरवाली यह पार पारकर कर दे<poem>
2,913
edits