802 bytes added,
05:58, 3 जून 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
}}
बाढ़ आ गई है, बाढ़!
बाढ़ आ गई है, बाढ़!
:::वह सब नीचे बैठ गसा है
:::::जो था गरू-भरू,
::::::भारी-भरकम,
::::::लोह-ठोस
::::::टन-मन
::::::वज़नदार!
और ऊपर-ऊपर उतरा रहे हैं
:::::किरासिन की खालीद टिन,
::::::डालडा के डिब्बे,
::::::पोलवाले ढोल,
::::::डाल-डलिए- सूप,
::::::काठ-कबाड़-कतवार!
बाढ़ आ गई है, बाढ़!
बाढ़ आ गई है, बाढ़!