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कवि: [[{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=माखनलाल चतुर्वेदी]][[Category:कविताएँ]][[Category:|संग्रह=हिम तरंगिनी / माखनलाल चतुर्वेदी]] }}~*~*~*~*~*~*~*~ {{KKCatKavita}}<poem>
जागना अपराध!
 इस विजन बन -वन गोद में सखि, 
मुक्ति-बन्धन-मोद में सखि,
 
विष-प्रहार-प्रमोद में सखि,
 
 
मृदुल भावों
 
स्नेह दावों
 
अश्रु के अगणित अभावों का शिकारी-
 
आ गया विध व्याध;
 
जागना अपराध!
 
बंक वाली, भौंह काली,
 
मौत, यह अमरत्व ढाली,
 
कस्र्ण धन-सी,
 
तरल घन -सी
 सिसकियों के सधन बनसघन वन-सी, 
श्याम-सी,
 
ताजे, कटे-से,
 
खेत-सी असहाय,
 
कौन पूछे?
 
पुस्र्ष या पशु
 
आय चाहे जाय,
 खोलती सी जायशाप
कसकर बाँधती वरदान-
 
पाप में-
 
कुछ आप खोती
 
आप में-
 
कुछ मान।
 
ध्यान में, घुन में,
 
हिये में, घाव में,
 
शर में,
 
आँख मूँदें,
 
ले रही विष को-
 
अमृत के भाव!
 
अचल पलक,
 
अचंचला पुतली
 
युगों के बीच,
 
दबी-सी,
 
उन तरल बूँदों से
 
कलेजा सींच,
 
खूब अपने से
 
लपेट-लपेट
 
परम अभाव,
 
चाव से बोली,
 
प्रलय की साध-
 
जागना अपराध!
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