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इसने उन्‍हीं को बना दिया श्रृंगार।
 
बनाया उनका सुंदर आकार;
 
उनका बेलमुँड था शीश,
 
इसने लगाए बाल घूंघरदार;
 
और मिट्टी,लकड़ी, पत्‍थर, लोहा,
 
ताँबा, पीतल, चाँदी, सोना,
 
मूँगा, नीलम, पन्‍ना, हाथी दाँत-
 
सबके अंदर उन्‍हें डाल, तराश, खराद, निकाल
 
बना दिया उन्‍हें बाज़ार में बिकने का सामान।
 
पेकिंग से शिकागो तक
 
कोई नहीं क्‍यूरियों की दूकान
 
जहाँ, भले ही और न हो कुछ,
 
बुद्ध की मूर्ति न मिले जो माँगो।
 
 
बुद्ध भगवान,
 
अमीरों के ड्राइंगरूम,
 
रईसों के मकान
 
तुम्‍हारे चित्र, तुम्‍हारी मूर्ति से शोभायमान।
 
पर वे हैं तुम्‍हारे दर्शन से अनभिज्ञ,
 
तुम्‍हारे विचारों से अनजान,
 
सपने में भी उन्‍हें इसका नहीं आता ध्‍यान।
 
शेर की खाल, हिरन की सींग,
 
कला-कारीगरी के नमूनों के साथ
 
तुम भी हो आसीन,
 
लोगों की सौंदर्य-प्रियता को
 
देते हुए तसकीन,
 
इसीलिए तुमने एक की थी
 
आसमान-ज़मीन?
 
 
और आज
 
देखा है मैंने,
 
एक ओर है तुम्‍हारी प्रतिमा
 
दूसरी ओर है डांसिंग हाल,
 
हे पशुओं पर दया के प्रचारक,
 
अहिंसा के अवतार,
 
परम विरक्‍त,
 
संयम साकार,
 
मची है तुम्‍हारे रूप-यौवन के ठेल-पेल,
 
इच्‍छा और वासना खुलकर रही हैं खेल,
 
गाय-सुअर के गोश्‍त का उड़ रहा है कबाब
 
गिलास पर गिलास
 
पी जा रही है शराब-
 
पिया जा रहा है पाइप, सिगरेट, सिगार,
 
धुआँधार,
 
लोग हो रहे हैं नशे में लाल।
 
युवकों ने युवतियों को खींच
 
लिया है बाहों में भींच,
 
छाती और सीने आ गए हैं पास,
 
होंठों-अधरों के बीच
 
शुरू हो गई है बात,
 
शुरू हो गया है नाच,
 
आर्केर्स्‍ट्रा के साज़-
 
ट्रंपेट, क्‍लैरिनेट, कारनेट-पर साथ
 
बज उठा है जाज़,
 
निकालती है आवाज़ :
 
:::"मद्यं शरणं गच्‍छामि,
 
:::मांसं शरणं गच्‍छामि,
 
:::डांसं शरणं गच्‍छामि।"
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