नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=परवीन शाकिर |संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन …
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{{KKRachna
|रचनाकार=परवीन शाकिर
|संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन शाकिर
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<poem>
इश्क़ में भी मरना इतना आसान नहीं
ज़ात को रद करना इतना आसान नहीं
मुझमें ऐसी भी खामी देखी उसने
तर्क ए वफ़ा वरना इतना आसान नहीं
एक दफ़ा तो पास ए मसीहा कर जाए
ज़ख्म का फिर भरना इतना आसान नहीं
जाने कब शोहरत का जीना ढह जाए
पाँव यहाँ धरना इतना आसान नहीं
मरने की दहशत तो सबने देखी है
जाने से डरना इतना आसान नहीं