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{{KKRachna
|रचनाकार=विजय वाते
|संग्रह= दो मिसरे / विजय वाते;ग़ज़ल / विजय वाते
}}
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<poem>
डोलते फिरते हैं तारे चंद्रमा के आस पास
जल रहा सूरज अकेला कौन जाए आस पास
आज उतारी है जमीं पर नभ के लोंगों की बारात
ढूंढ लो तुम चाँद को होगा यही पे आस पास
तय शुदा दो चार जुमले कुछ अदाएं तयशुदा
है ये साहिब की मुहब्बत या इसी के आस पास
कब किसे इस जिन्दगी में चाहने से कुछ मिला
जो मिला आधा अधूरा या नहीं के आस पास
</poem>
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|रचनाकार=विजय वाते
|संग्रह= दो मिसरे / विजय वाते;ग़ज़ल / विजय वाते
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डोलते फिरते हैं तारे चंद्रमा के आस पास
जल रहा सूरज अकेला कौन जाए आस पास
आज उतारी है जमीं पर नभ के लोंगों की बारात
ढूंढ लो तुम चाँद को होगा यही पे आस पास
तय शुदा दो चार जुमले कुछ अदाएं तयशुदा
है ये साहिब की मुहब्बत या इसी के आस पास
कब किसे इस जिन्दगी में चाहने से कुछ मिला
जो मिला आधा अधूरा या नहीं के आस पास
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