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|रचनाकार=विजय वाते
|संग्रह= दो मिसरे / विजय वाते;ग़ज़ल / विजय वाते
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<poem>
रफ्ता रफ्ता जिन्दगी का मार्ग कटता जाएगा
लम्हा लम्हा पूर्णता का सिम्त बढ़ता जाएगा

कब पता था साथ होंगीं इस कदर आसानियाँ
पाँव रखूंगा जहाँ मैं पंथ बनता जाएगा

और फिर अनमोल सी इस जिंदगी की राह पर
कोई अपने पाँव के कुछ चिन्ह रखता जाएगा

एक चिड़िया चोच में तिनका समेटे आयेगी
इक घरोंदा तिनका तिनका यों ही बनाता जायेंगा

सूर्य देगा रोशनी बी और गर्मी भी सुखद
आ के कोई पेड़ सर पर छांह करता जाएगा

इस करम का शुक्रिया बस मेरे मालिक ये बता
क्या तेरा बच्चा मुकद्दर साथ लेता जाएगा ?
</poem>