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14:01, 29 जून 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कर्णसिंह चौहान
|संग्रह=हिमालय नहीं है वितोशा / कर्णसिंह चौहान
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
धूप में अंग अंग
नहा रही लड़की
सूरज को शरीर का अंधेरा
दिखा रही लड़की ।
चाह रही
अबकी यह बदरंगापन भर जाए
ताम्रवर्णी छटा
वर्जित प्रदेश में भी लहराए
मोम तन पर कालिख
लगा रही लड़की ।
काश यह हो जाता
बन जाती नीग्रो
चमचमाती सुंदर
साल भर चलती ग्रीव तान
बस यही मन्नत
मना रही लड़की ।
<poem>