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|रचनाकार=कर्णसिंह चौहान
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<poem>

हर जगह
बहुत मदमायी है
सत्ता
सत्ता के चाकर
जोकर, ब्रोकर
उसकी कृपा से फूले
सांस्कृतिक नेता
बहुत इतराये हैं
सब जगह छाये हैं

देखो कितनी खोखली है
स्वयं इसकी इयत्ता
अभी कल मद में झूमी
निर्विअरोध अहकार में दूनी
कितनी क्षणभंगुर
इसकी अमरता
इसका होना
बने रहना
डराना, धमकाना
बनाना, मिटाना
सबको गिर्द घुमाना
कुछ सिद्ध नहीं करता

बुदबुदे सा
इसका वैभव
इसकी शक्ति
आतंक
नष्ट होगी वह
अपने ही भार से
पाप से
पश्चाताप से।

यदि बच सकी
तो बचेगी थोड़ी सी अर्थवत्ता
स्वाभिमान में
बलिदान में
गुमनाम में
मामूली काम में

आज जो गाज रहे
कितनी देर गाजेंगे
बज रहे जो अंबर में
कितनी देर बाजेंगे?
<poem>
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