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|रचनाकार=कुमार रवींद्र
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[[Category:गीत]]{{KKCatNavgeet}}<poem>
घोड़े ही घोड़े हैं
 
दौड़ रहे बेलगाम घोड़े हैं सड़कों पर
 
घोड़े ये आदिम हैं
 
सदियों से
 
ऐसे-ही दौड़ रहे
 
थकें नहीं थमें नहीं
 
यह कैसा पागलपन
 
कौन कहे
 
वैसे भी खतरे थोड़े हैं सड़कों पर
 
घोड़े ही घोड़े हैं
 
बिजली है पांवों में
 
बादल-से
 
उड़ते उनके अयाल
 
दूर कहीं झरने में
 
ऐड़ लगा
 
जल गाता है ख़याल
 
वही राग झरनों ने मोड़े हैं सड़कों पर
 
घोड़े ही घोड़े हैं।
 
कथा एक -
 
कहते हैं किरणों ने
 
रूप धरा घोड़ों का
 
बार-बार
 
मिलन हुआ था
 
उनके जोड़ों का
वही रूप किरणों ने छोड़े हैं सड़कों पर
 
घोड़े ही घोड़े हैं।
</poem>
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