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11:46, 3 जुलाई 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=दिनेश कुमार शुक्ल
|संग्रह=ललमुनियॉं की दुनिया
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<poem>
लाली सुबह की धीरे  
धीरे लहू में घुलती 
दो हाथ रौशनी के 
थामे हुए गगन को 
चुपचाप सो रहा था 
संसार का अतल जल 
तालाब था कँवल का 
और आग जल रही थी 
चालीस साल तप कर 
कुन्दन निखर उठा था 
जैसे कलस का पानी 
तुम पर अभी गिरा हो 
आहट पे मेरी तुमने 
तक-तक के बान मारे 
सारस का एक जोड़ा 
उतरा तभी जमीं पर 
जागा पवन का झोंका 
पानी की नींद टूटी 
वो दिन कि आज का दिन 
बैठा हूँ चुप तभी से 
</poem>