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|रचनाकार= मनोज श्रीवास्तव
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'''संगीन जुर्म'''


पैतृक प्रायश्चित के
संगीन जुर्म में,
वह आजीवन पश्चाताप के
कटघरे में
अपने ही बनाए सवालों से
जिरह करता रहा
ज़ुर्मी होने का
ताउम्र
ठोस तर्क ढूँढता रहा.