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Kavita Kosh से
परोसा भूखे तन की थाली में
स्नेह का सतरंगा व्यंजन,
.....
झुलाया, अलमस्त सांसों की डोर पर
नचाया, धडकते धड़कते दिल की मृदंगी थाप पर
विचराया, आहों के सागर-तट पर