गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
तुम्हीं को देखा / चंद्र रेखा ढडवाल
No change in size
,
16:09, 16 जुलाई 2010
ज़िन्दगी का सर्वाधिक सुखद भी
जब घट रहा था
/
मैं असम्पृक्त नहीं थी
इतनी उदारता उस पल भी
नहीं दिखाई तुमने
चूर-चूर यदि नहीं
टुकड़ा-टुकड़ा तो
हुए
हैं
ही.
</poem>
द्विजेन्द्र द्विज
Mover, Uploader
4,005
edits