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Kavita Kosh से
न चुहुलबाजी में गाल बजाते हुए
न चहलकदमी करते हुए
न ही हवाई कलाबाजियां मारते हुए,
चुपचाप पनीली आंखों से
आजादी के साथ
वो सब कर-गुजर रहे हैं
जो जन साधारण जनसाधारण
आजादी का मतलब समझने तक
नहीं कर पाएंगे.