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बोध / मनोज श्रीवास्तव
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08:54, 3 अगस्त 2010
यह बोध
यह उन्माद!
कितना निश्छल है--
महास्वप्न की
अनुभूति की प्रक्रिया में
इसे साकार करने का त्रिशंकु प्रयास!
कितनी अजीब है--
कल्पना और यथार्थ के
हिंडोले में
झूलती ऐन्द्रियता
जिसका अतीत-बोध
एक स्वप्निल चित्र है
और वर्त्तमान
एक मायावी षड्यंत्र!
Dr. Manoj Srivastav
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