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चिराग नहीं जलते / अशोक लव

50 bytes added, 07:40, 4 अगस्त 2010
{{KKRachna
|रचनाकार=अशोक लव
|संग्रह =लड़कियाँ छूना चाहती हैं आसमान/ अशोक लव}}{{KKCatKavita‎}}
<poem>
हुए हस्ताक्षर
मिलाये मिलाए नेताओं ने हाथविभाजित हो गया कागज़ काग़ज़़ के टुकड़े पर
इतना बड़ा देश
लोगों से पूछा तक नहीं गया |
विभाजित हो गए लोग
बँट गए गली-मोहल्ले,गावँ-शहर,घर -आँगन!
मर गए रिश्ते
भर मर गई इंसानियत
जी भरकर भोगा कामांध दरिंदों ने लड़कियों-औरतों को
तलवारों के वार से करते गए
फूँक डाले मोहल्ले के मोहल्ले
हो गए भस्म हिंसा की आग में
खानदान के खानदान |
इस पार के
और उस पार के
राजनेताओं के हुए राज्याभिषेक
जगमगाए उके उनके भवनों पर रंग-बिरंगे बल्ब नहीं जल पाए चिराग आजतक आज तक
उन घरों में
बुझ गए थे जो सं सन सैंतालीस में |
</poem>
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