भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=हरीश भादानी|संग्रह=आड़ी तानें-सीधी तानें / हरीश भादानी}}{{KKCatGeet}}<poem>रही अछूती
सभी मटकियाँ
मन के कुशल कुम्हार की
रही अछूती....
साधों की रसमस माटी
क्वांरा रूप उभार दिया
सतरंगी सपने आँककर
हाट सजाई
मन के कुशल कुम्हार की
रही अछूती....
अलसाई ऊषा छूदे
मन के कुशल कुम्हार की
रही अछूती....
हठी चितेरा प्यासा ही
भरी उमर की बाजी पर
विश्वास लगे हैं दाँव में
हार इसी आँगन
सभी मटकियाँ
मन के कुशल कुम्हार की
रही अछूती...</poem>