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बिजली सी कौंद गयी आँखों के आगे, तो क्या,<br />
बात करते कि मैं लब-तश्नऐ-तक़री भी था ।<br />
<br /><br /><br />"वह आकर और एक झलक-सी दिखलाकर ग़ायब हो गए । आँखों के आगे एक बिजली-सी कौंद गयी । पर मैं तो उनसे बातचीत का प्यासा था; दो-एक बातें भी कर लेते तो कितना अच्छा होता ।"
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