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{{KKRachna
|रचनाकार=मुकेश मानस
|संग्रह=काग़ज़ एक पेड़ है / मुकेश मानस
}}
{{KKCatKavita
}}
<poem>
भूल जाओ बाहर का शोर
कहीं तुम्हारे मन के भीतर
देखो नाच रहा है मोर
महक रहे हैं सुंदर-सुंदर
रंग-बिरंगे फूल मनोहर
विस्तृत नभ के हर कोने से
उतर रही है सुबह की लाली
भर लो इसको आँचल में
स्वागत करो सुबह का
सुबह आई है द्वार तुम्हारे
2005
<poem>
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|रचनाकार=मुकेश मानस
|संग्रह=काग़ज़ एक पेड़ है / मुकेश मानस
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भूल जाओ बाहर का शोर
कहीं तुम्हारे मन के भीतर
देखो नाच रहा है मोर
महक रहे हैं सुंदर-सुंदर
रंग-बिरंगे फूल मनोहर
विस्तृत नभ के हर कोने से
उतर रही है सुबह की लाली
भर लो इसको आँचल में
स्वागत करो सुबह का
सुबह आई है द्वार तुम्हारे
2005
<poem>