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{{KKRachna
|रचनाकार=गोबिन्द प्रसाद
|संग्रह=कोई ऐसा शब्द दो / गोबिन्द प्रसाद
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
वहाँ
ठठाती हँसियों के बीच
हम सब कितने भले लगते
पहाड़ी पगडण्डियों के मोड़
पर,खड़े बतियाते
शिखर पर आकण्ठ
चिहुँक कर बोलता पाखी
गतियों में आबद्ध
दूर ही से देवदार
बाँहे फैलाते
<poem>
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|रचनाकार=गोबिन्द प्रसाद
|संग्रह=कोई ऐसा शब्द दो / गोबिन्द प्रसाद
}}
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वहाँ
ठठाती हँसियों के बीच
हम सब कितने भले लगते
पहाड़ी पगडण्डियों के मोड़
पर,खड़े बतियाते
शिखर पर आकण्ठ
चिहुँक कर बोलता पाखी
गतियों में आबद्ध
दूर ही से देवदार
बाँहे फैलाते
<poem>