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कर निःशस्त्र आत्म-अभिमानी!
::युग-युग का घनतम फटता है
::नव प्रकाश प्राणों में भरता,::वंदनीय बापू वह आया::कोटि कोटि चरणों को धरता;निद्रित भारत, जगा आज हैयह किसका पावन प्रभाव है?किसके करुणांचल के नीचेनिर्भयता का बढ़ा भाव है?::नवचेतन की श्वास ले रहे::हम भी आज जी उठे जग में,::उठा लगाया हृदय-कंठ से::किसने पददलितों को मग में?व्यथित राष्ट्र पर आँचल करताजीवन के नव-रस-कन ढरता,वंदनीय बापू वह आयाकोटि कोटि चरणों को धरता!::यह किसका उज्ज्वल प्रकाश है::नवजीवन जन जन में छाया,
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