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06:42, 16 सितम्बर 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अलका सर्वत मिश्रा
|संग्रह=
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<poem>
खेल-खेल में ही
क्या खेल खेला गया
वह खेल
आज
बन चुका है
लाखों लोगों की आवश्यकता
इंतज़ार करते हैं सभी
खेल के आगे बढ़ने का
क्योंकि
यह खेल जब एक कदम और बढ़ता है
तो कई सारे लोगों की
तकलीफें दूर होती हैं
वे दुआएं देते हैं
वे फोन करते हैं
वे मेल करते हैं
और कुछ जिगासु तो प्रश्न भी करते हैं
थोड़ा और ज्यादा देखने की कोशिश भी
अनुरोध भी करते हैं!
खेल को आगे बढाने का
ऐसे खेल !!!
ऐसा खेल !!
सभी खेलें तो...
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