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12:43, 24 सितम्बर 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=पूनम तुषामड़
|संग्रह=माँ मुझे मत दो / पूनम तुषामड़
}}
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<poem>
हे निर्जीव ईश्वर!
उसने की है तुम्हारी अराधना
हर बार
दुख में सुख में।
फिर भी तुम्हारे
मंदिर की दहलीज पर
पड़ते ही पांव
बन जाते हैं
उसके शरीर और
आत्मा पर घाव।
इससे तो अच्छा था
तुम्हारे नाम का चढ़ावा
वह अपने बच्चे को
खिला देता।
न देता तुम्हारे नाम पर चंदा
अपनी नन्हीं बेटी को
खिलौने दिला देता।
तमाम उम्र
ले लेकर कर्ज
तुम्हारे धर्म के नाम पर
न अदा करता कोई फर्ज।
इससे तो अच्छा था
वह अपनी
टूटी झोंपड़ी की जगह
सर छुपाने को
एक मकां बना लेता।
</poem>