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आग्रह / श्रीनिवास श्रीकांत

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aagrah
}}
<poem>aagrah
(मित्रों से क्षमा सहित)
मित्रो, मैं मर जाऊँ
सहज ही समझ जाएँगी
मैं था एक ज़हरीला साँप।
</poem>Mukesh Negi
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