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पातल’र पीथल / कन्हैया लाल सेठिया
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|रचनाकार=कन्हैया लाल सेठिया
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poem
Poem
>अरे घास री रोटी ही जद बन बिलावड़ो ले भाग्यो।
नान्हो सो अमर्यो चीख पड्यो राणा रो सोयो दुख जाग्यो।
हूं लड्यो घणो हूं सह्यो घणो
अनिल जनविजय
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