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वृक्ष हों भले खड़े, हो घने, हो बड़े, समय ने जब भी अधेंरो से दोस्ती की है<br>एक पत्र-छॉंह भी मॉंग मत, मॉंग मत, मॉंग मत! जला के हमने अपना घर रोशनी की है<br>अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!सुबूत हैं मेरे घर में धुएं के ये धब्बे<br>अभी यहाँ पर उजालों ने ख़ुदकुशी की है।<br>
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कविता कोश में [[हरिवंशराय बच्चनगोपालदास "नीरज"]]
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