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|रचनाकार=मनोज भावुक
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[[Category:ग़ज़ल]]
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आदमी जे सहज सरल बाटे
खूब हमरा पसन परल बाटे

छोड़ दिहले हँसल ऊ अनका पर
जब से खुद पर नजर पड़ल बाटे

सुख के एहसास नइखे हो पावत
सुख के सामान सब भरल बाटे

दुख के दरियाव से बनल बदरी
आँख का राह से झरल बाटे

भर मुँहे बात जे कइल ना कबो
आज हमरा प ऊ ढरल बाटे

घाम बदनाम बा भले 'भावुक'
पाँव तऽ छाँव मे जरल बाटे

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