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आ चांदनी भी मेरी तरह जाग रही है / बशीर बद्र
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12:20, 7 नवम्बर 2010
ये बात कि सूरत के भले दिल के बुरे हों
अल्लाह करे झूठ हो बहुतों से
सूनी
सु
नी
है
वो माथे का मतला हो कि होंठों के दो मिसरे
द्विजेन्द्र द्विज
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