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08:55, 12 नवम्बर 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= जावेद अख़्तर
|संग्रह= तरकश / जावेद अख़्तर
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
ग़म होते है जहां ज़हानत होती है
दुनिया में हर शय <ref> चीज</ref>की कीमत होती है
अक्सर वो कहते है वो बस मेरे है
अक्सर क्यूँ कहते है हैरत होती है
तब हम दोनों वक़्त चुरा कर लाते थे
अब मिलते है जब भी फुर्सत होती है
अपनी महबूबा में अपनी माँ देखे
बिन माँ के लड़कों की फितरत <ref> प्रकृति</ref> होती है
इक कश्ती में एक कदम ही रखते है
कुछ लोगों की ऐसी आदत होती है
</poem>
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