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|संग्रह=खिचड़ी विप्लव देखा हमने / नागार्जुन
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इन सलाखों से टिकाकर भाल
सोचता ही रहूंगा रहूँगा चिरकाल
और भी तो पकेंगे कुछ बाल
जाने किस की / जाने किस की
और भी तो गलेगी कुछ दाल
न टपकेगी कि उनकी राल
सामने आकर करेगा वो न एक सवाल
मैं सलाखों से टिकाए भाल
सोचता ही रहूँगा चिरकाल