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12:59, 24 नवम्बर 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार= मनीष मिश्र
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<poem>
''(गोमती नदी पर एक पोट्र्रेट)''
भरे पूरे शहर के पड़ोस में
एक दुबली सी नदी रहती है।
अनवरत चलती है बिंवाई भरे पैरों से
लेट जाती है रेत और कचरे के बिस्तर पर
और डबडबायी आँखों से देखती है अपनी बदरंग देह।
खिलखिलाते हुये शहर के जगमग पड़ोस में
एक सहमी सी नदी बहती है
अपने जल के सँकरे विस्तार में
गाढ़ी भूरी आवाज में बुदबुदाती है
धूप का आँचल और रेत का चेहरा पहन कर
प्रार्थना करती है।
शोर से भर शहर के पड़ोस में
एक चुप सी नदी रहती है।
</poem>