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विश्वास / प्रिया जौहरी
Kavita Kosh से
वो पौधा जिसे प्रेम कहते हैं
को विश्वास का पानी देना
जब एक दुखी हो तो
परछाई बन यह कह देना
कि मैं हूँ ना
कितना विश्वास दिला जाता है
किसी की हथेलियों का
आंसूओं के लिए रुमाल हो जाना
दर्द में किसी का हमदर्द हो जाना
किसी की तन्हाई में
उसकी मर्जी बिना शामिल हो जाना
किसी की सोच का
अंतिम बिंदु हो जाना
प्रेम में जो सबसे मुश्किल है
वह दो बिंदुओं का मिलकर
एक बिंदु हो जाना है
कितना आसान है
प्रेमी को संज्ञा मानकर
प्रेम को व्याकरणीय रचना
मान लेना
परन्तु मुश्किल होता है
प्रेमी का विशेषण हो जाना
और प्रेम का व्याकरण हो जाना