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वृक्ष / अक्षय उपाध्याय

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लंबे फैले रास्तों के दोनों ओर खड़े
इन वृक्षों को देखो
तो लगेगा- ये कितने साहस से भरे हैं

वर्षा और शीत में इनकी पत्तियाँ किस तरह झूमती हैं
धूप में खड़े ये वृक्ष
जंगल के पूरे हरेपन को नसों में लिए
ज़मीन पर उगी घास को स्नेह देते हैं और
उनको
हक़ों के लिए बराबर उकसाते हैं ।

ये वृक्ष अँधेरी रातों में भी
जब हवा तक क़ैद हो जाती है
जंगल के हाथ
थके-सहमे यात्रियों को आलिंगन में लेकर
उन्हें आगे के रास्ते के लिए अपना अनुभव
सौंपते हैं ।

पानी में भीगते
नहाए ये वृक्ष
योद्धा से दिखते हैं
अभी भी खोजते हैं

अपनी गाँठदार आँखों से
उन पक्षियों को
जो दूर-दूर देशों से इनके लिए शुभकामनाएँ लाकर
अपने घोंसले बनाएँगे

ये तटस्थ मूक खड़े वृक्ष
केवल वृक्ष नहीं हैं

ये हमारी मंज़िल के सहयात्री हैं
ये जानते हैं इनकी जड़ें कितनी गहरी
और पोख़्ता हैं
जिनकी बदौलत ये वृक्ष
आदमी से कई गुणा बड़े और साहस से भरे हैं ।