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वृक्ष जैसा रूप बदलता है / साधना जोशी
Kavita Kosh से
फूल पत्तो से ।
जड़ को तो जमी में ही रहना है,
नदियां राह बदलती है,
दूरी तो वही है,
उदगम से सागर तक की ।
उसमें समझ पैदा करें,
दायित्वों को नि भाने की ।
अपने अस्तित्व बचाने की,
नई प्रेरणाओं के साथ
सोच जगानी है देना है उपहार,
आर्कशण का नहीं,
प्रभाव पूर्व अस्तित्व का
दायित्वों से हटने का नही,ं
कर्तव्य निश्ठ होने का ।
आज साथ है उसके षिक्षा,
कुछ करने का हुनर,
उसे नाजुकता,
अर्मयदाओं से दूर रखना है ।
जाना उसे भी वहीं है,
जहां से मां आयी है ।
उसे राह से भटकना नहीं है,
रखनी है परख उचित अनुचित की ।
सावधानी से मार्गदर्षिका बनना है,
एक बेटी के लिए माँ
को ममता को छांव बनकर ।।