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वेदना बनी, मेरी अवनी। / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

वेदना बनी;
मेरी अवनी।

कठिन-कठिन हुए मृदुल
पद-कमल विपद संकल
भूमि हुई शयन-तुमुल
कण्टकों घनी।

तुमने जो गही बांह,
वारिद की हुई छांह,
नारी से हुईं नाह,
सुकृत जीवनी।

पार करो यह सागर
दीन के लिए दुस्तर,
करुणामयि, गहकर कर,
ज्योतिर्धमनी।