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वे तीन / कृष्णमोहन झा
Kavita Kosh से
ढेर सारे शब्द हैं उसके पास
एवं घटना
अथवा दुर्घटना को
जीवंत तथा प्रामाणिक बनाने के लिए
उसके पास उतनी ही चित्रात्मक और मुहावरेदार भाषा है
जितनी यह दुर्लभ समझ
कि सिर्फ़ वह जानता है कि हकीक़त क्या है
दूसरे के पास
खून में लिथड़ा हुआ चेहरा
और एक अटूट थरथराहट के सिवा
कहने के लिए कुछ भी शेष नहीं है
या तो जान बचाने में कट गई है उसकी जीभ
या वह बताने के काबिल ही न रहे
इसलिए काट ली गई है
जिसने सबसे निकट से जाना इस बर्बरता को
उसे ज्यों का त्यों बताने के लिए
अब हमारे बीच नहीं है