Last modified on 13 अप्रैल 2012, at 20:50

वैतरणी पर पुल / लीलाधर जगूड़ी

इससे अधिक कष्ट की बात क्या हो सकती है

कि मृतकों को वहाँ भी संसार जैसे ही कष्ट बताए गए हैं

जीते जी की तरह मरने के बाद भी डरो

यहाँ से भी बीहड़ बताए गए हैं वहाँ के रास्ते

वहाँ भी बिल्कुल यहाँ जैसी दुष्टताएँ हैं

कोई मृतक किसी मृतक को सहारा नहीं देता

बिलकुल यहीं जैसा पिछड़ापन कहीं कोई सवारी नहीं

मृतक को चलना बहुत पड़ता है

लंबी दूरियोंवाले पड़ाव भी बहुत और खतरनाक हैं

आश्चर्य तो यह कि मृतक को

मरने के बाद भी भूख का मुकाबला करना पड़ता है

धाँधली यह कि किसी का पिंडदान कोई और खा जाता है

यहीं जैसा लुच्चापन वहाँ भी

जीते जी जैसे कामों से मरने के बाद भी छुटकारा नहीं

कैदियों की तरह मृतक की भी जमानत करवानी पड़ती है

(वकीलों के नहीं पुरोहितों के माध्यम से)

गोदान किए मृतक वैतरणी पार के लिए बारी का इंतजार कर रहे हैं

गाय के सहारे नदी पार करने की तकनीक

पिछड़ेपन को वहाँ भी छिपने नहीं देती

अफसोस कि मन्वंतरों के बाद भी वैतरणी पर पुल नहीं बन सका

क्या यमलोक में डेरी और सेतु निर्माण

एक ही मंत्रालय के अधीन हैं ?

इधर बछिया से वैतरणी पर पुल का काम लिया

उधर गाय बनते ही उसे दुहने लगे

यहाँ दान की गाय अगर वहाँ उपस्थित रहती है

तो हित चाहनेवाला पुरोहित वहाँ अनुपस्थित क्यों ?

जब वह वहाँ साथ नहीं दे सकता तो दुधारू गाय

पुरोहित का घर और अपनी देह छोड़े बिना मृतक का साथ कैसे दे सकती है?

दान की गाय के बदले शायद यमलोक की गाय मिलती हो

जिसे वैतरणी पार करते ही जमा कराना पड़ता होगा...

पूँछ पकड़ कर नदी पार करना अविश्वसनीय भी लगता है

और सोचने को भी मजबूर करता है

अगर एक स्वचालित नाव दान की जाए तो कैसा रहेगा?

(पर पुरोहित अभी इतने टेक्निकल नहीं हुए हैं)

फिर भी यमराज से वैसी ही प्रार्थना है

जैसे मुख्यमंत्री या किसी भी मंत्री से मरणशील जनता करती है

कि वैतरणी पर जल्दी पुल बनाया जाए

और यह भी निवेदन है कि बिना दिहाड़ी मजदूरों का काम

पुरोहितों से लिया जाए

(पुरोहितों की वजह से ही सारे ब्राह्मण गाली खा रहे हैं)

क्योंकि शहरी विकास प्राधिकरणों में वसूले गए टैक्स की तरह

पुरोहितों को बहुत गो धन दान किया जा चुका है

पुरोहित अब इतना हित और करें कि शरीर त्यागते ही

वैतरणी पर पुल बनाने के लिए बिना दक्षिणा श्रमदान करें

और वहाँ मृतक को गरुड़ पुराण वैतरणी का पुल पार करते समय सुनाएँ