कूचों और मुहल्लों से, 
उनकी झोपड़पट्टी के 
बीचों-बीच बने-निकले 
ऊबड़-खाबड़, ऊँचे-नीचे 
पथरीले-कँकरीले सँकरे पथ से 
निकल रहा है 
दलितों का 
आकाश गुँजाता, नभ थर्राता 
भव्य जुलूस ! 
नहीं किराये के 
गलफोडू नारेबाज़ नक़लची 
असली है, सब असली हैं जी — 
मोटे-ताजे, हट्टे-कट्टे 
मुश्टंडे-पट्ठे, 
कुछ तोंद निकाले गोल-मटोल 
ओढे महँगे-महँगे खोल ! 
सब देख रहे हैं कौतुक —
दलितों के 
नंग-धड़ंग घुटमुंडे 
काले-काले बच्चे, 
मैली और फटी 
चड्डी-बनियानों वाले 
लड़के-फड़के, 
झोंपडयों के बाहर 
घूँघट काढ़े दलितों की माँ-बहनें 
क्या कहने ! 
चित्र-लिखी-सी देख रही हैं, 
पग-पग बढ़ता भव्य जुलूस, 
दलितों का रक्षक, दलितों के हित में 
भरता हुँकारें, देता ललकारें 
चित्र खिँचाता / पीता जूस ! 
निकला अति भव्य जुलूस ! 
कल नाना टीवी-पर्दों पर 
दुनिया देखेगी 
यह ही, हाँ यह ही —
दलितों का भव्य जुलूस ! 
अफ़सोस ! 
नहीं है शामिल इसमें 
दलितों की टोली, 
अफ़सोस ! 
नहीं है शामिल इसमें 
दलितों की बोली !