वो ऐसे रिश्ते निभा रहा था
के जैसे एहसाँ जता रहा था
ये उसका चेहरा बता रहा था
वो कुछ तो मुझसे छिपा रहा था
है दिल में उसके कोई तो उलझन
जो रात भर जागता रहा था
मैं उससे जो कुछ भी कह रही थी
हवा में उसको उड़ा रहा था
नहीं थी तूफ़ान की कोई परवाह
ख़ुदा मेरा नाख़ुदा रहा था
हमें वो देता था दरस ए ईमां
जो कुफ्र में मुब्तिला रहा था
समझ रहा था ख़ुदा वो ख़ुद को
करम सिया जो गिना रहा था