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वो कौन है / सरोज सिंह
Kavita Kosh से
वो कौन है जो
घने अँधेरे में गुमसुम सा
ख़ामोश सदा देता है
सिलसिला लम्हों का
सदियों सा बना देता है
वो कौन है जो
मेरी सहमी हुई साँसों की रास
थामे हुए चल रहा है
उससे मिलने को मगर
मन मचल रहा है
वो कौन है जो
अपने ना होने पर भी
अपना वजूद थमा देता है
हर इक अक्स पर
नक़्श अपना जमा देता है
जाने किस सम्त से
हवा बह कर आई है
मेरे कानो में फुसफुसाई है
वो तो तेरी जाँ भी नहीं
उसके मिलने का इम्काँ भी नहीं
सुनकर, मेरे
पलकों की सलीबो पर
झूलने लगते हैं ख़्वाब
चांदनी नींद को
लोरी गा के सुला देती है
रातें बिस्तर पर कांटे उगा देती है
और नींद...
नींद से उठकर
मुझे सुलानेआती नहीं आती ही नहीं!