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वो लड़की-2 / अनिल सरकार
Kavita Kosh से
एक दोपहर लड़की आई,
हाथों में एक फूल,
आँखों में बारिश और आँसुओं का पारावार,
होंठों पर झड़े हुए बकुल की सुगंध !
एक वृक्ष की तरह वह स्थिर थी,
आकाश की तरह परिव्याप्त,
नदी की तरह निर्बंध ।
वो एक बेटी और माँ थी,
फिर भी बातें करती थी
प्रगतिशील स्त्रियों की
जो आकाश होना चाहतीं,
पक्षी होना चाहतीं,
प्रेमिका होना चाहतीं,
होना चाहतीं
चाँदनी रात-सी मदिर !
मूल बंगला से अनुवाद : चंद्रिमा मजूमदार और अनामिका