भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शंख / मोनिका कुमार / ज़्बीग्न्येव हेर्बेर्त
Kavita Kosh से
मेरे माता पिता के कमरे में
आईने के सामने
गुलाबी रंग का शंख
रखा था।
पंजों के बल खड़े होकर
मैंने इसे चुराया
और फट से अपने कानों पर लगा लिया।
मैं इसे तब सुनना चाहता था
जब यह अपनी तड़प का
वही एकालाप ना कर रहा हो।
भले ही मैं छोटा था
पर मुझे पता था कि
आप चाहे किसी से बहुत प्यार करते हों,
कई बार ऐसा होता है कि
आप उसके बारे में
सब कुछ भूल जाते हैं।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : मोनिका कुमार