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शब्द-पाश / दिनेश कुमार शुक्ल

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जिसे व्यक्त करके मुक्त करना होता है
उसी को बाँध देते हैं शब्द
दाँव-पेंच में जैसे
बाँधे रखता है मुवक्किल को वकील

कहने-सुनने की कचेहरी के
इन काले-कोटधारी शब्दों के
कहने पर मत जाइए

बने तो शब्दों के बिना भी कभी-कभी
सब कुछ कह जाइए