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शब्द और रंग - 1 / सुरेन्द्र स्निग्ध

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आज की रात
आकाश में है भरा-पूरा चाँद
सागर के अनन्त विस्तार पर
तनी हुई है चान्दनी

आज सारी रात
हम सुनेंगे
सागर-संगीत की विविधता
हम ग़ौर से सुनेंगे
एक-एक सिम्फ़नी के छोटे-छोटे नॉट्स

सारी रात गिनेंगे हम
लहरों पर नाचती
एक-एक चान्दनी
जो कर रही है पैदा
जादुई करिश्मा
प्रतिक्षण प्रतिपल
बुन रही है
मायावी संसार का जाल

हम खोज रहे हैं शब्द
सहायता करना, मित्रो !
शब्द ढूँढ़ने में
सहायता करना
रंगों के माध्यम से
भाषा की तलाश में
ऐसी भाषा
जो अभिव्यक्त कर सके
सागर-सौन्दर्य
अभिव्यक्त कर सके

मेरे हृदय की भावनाएँ
बहुत आसानी से छू सकें जिन्हें
तुम्हारी कोमल-पतली उँगलियाँ

आज हम
बैठेंगे सारी रात

एक-दूसरे की उपस्थिति का

करते हुए सार्थक अहसास

एक-दूसरे के जीवन

की किताबों की ख़ाली
जगहों पर

लिखते हुए एक नई कविता
भरते हुए
उदासी
के कई-कई रंग