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शब्द के अवमूल्यन पर / सवाईसिंह शेखावत
Kavita Kosh से
कितना निष्करुण समय है
ज़रूरतन नहीं महज शौक़ के लिए
हम शामिल होते हैं शब्दों के पतन में
बिना किसी खेद के
भाषा की दुनिया में जगह बनाने के लिए
सोपान से शिखर तक जाने के लिए
विकट साधना करनी पड़ती है शब्द को
बहुत कठिन और जोखिम भरी है यह यात्रा
एक-एक क़दम तौल कर रखना पड़ता है
कितने खंदक मुंह बाए खड़े हैं राह में
“भाषा का नेक नागरिक होने के लिए
हम किसी शब्द की रीढ़ न बन पाएं
कोई हर्ज़ नहीं
लेकिन एक अच्छे खासे शब्द को
गर्त में धकेलने का हक़ हमें नहीं है
शब्दों की दुनिया में
कल फिर एक हादसा हुआ
जब चैनल वालों ने एक गुंडे को
बाहुबली कहकर पुकारा
मुझे सख्त एतराज़ है
शब्द के अवमूल्यन पर