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शब्द हैं साभार / शुभम श्रीवास्तव ओम
Kavita Kosh से
देह की
सहमति नहीं कंकाल से,
लोग नाख़ुश भी नहीं
इस हाल से।
पक्षधर है
विभ्रमों का, उलझनों का
यह समय केवल
खुले विज्ञापनों का
जन समर्थन
जुट रहा मिसकॉल से।
पास में
कुछ भी नहीं वैचारिकी
लोग बनने में
लगे हैं पारखी
शब्द हैं साभार
‘उनकी वाल‘ से।
भीड़ होकर
भीड़ से अनजान हैं
कान में हर वक्त
‘भाईजान‘ हैं
गर्व की अनुभूति
इस्तेमाल से।