भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शरद ऋतु आई / हरेराम बाजपेयी 'आश'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खतम हुआ वर्षा का मौसम
और शरद ऋतु आई रे,
आसमान है नीला नीला,
धरती पर हरियाली रे॥1॥

खेतों ने सोना उपजाया
हर किसान देखो मुस्काया,
कहीं पर आलू, चना कहीं पर
कहीं पर गेहूँ-राई रे ॥2॥

प्रात: सूरज देर से आए
शाम को जल्दी वापस जाए
छोटे हो गए दिवस देख लो
बढ़ गई रात-लम्बाई रे॥3॥

मोठे कपड़े ऊनी कपड़े
शॉल और कम्बल के नखरे
प्यारी प्यारी धूप लगेगी
प्यारी लगे रज़ाई रे॥4॥
मेथी पालक पत्ता गोभी
साग चने का मक्का की रोटी,
गरम दूध का स्वाद निराला
जिसमे पड़ी मलाई रे॥5॥

दीप जला दीवाली मनाई
खील बताशे मिठाई खाई
बहाना से टीका लगवाकर
खुश है देखो भाई रे॥6॥

खेले कूदे मौज मना ली,
नई नई है ड्रेस ब्सिला ली,
बिना किसी नागा के बच्चों,
 कर दो शुरू पढ़ाई रे॥7॥