भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शर्त / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
यदि तुम जीवन के सागर की छापामार लहर हो कोई
तब तुम अपने जीवित जल से
आड़े आए हुए किसी भी प्रतिरोधी को टक्कर दे कर
हटा सकोगे और लक्ष्य तक पहुँच सकोगे अपने मन के
वरना तुम को ध्वंस करेगा वह प्रतिरोधी अपने बल से
और तुम्हारी छोटी सत्ता को बिखरा देगा बूंदों में
केवल बुदबुद करते रह कर जिया करोगे सिसकी लेते
अपने प्रतिरोधी के चरणों को पखारते
बहुत दिनों तक--बहुत दिनों तक ।