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शहर जिसे कहते हैं मेरठ / निशान्त जैन

 शहर मेरे तू मेरी मुहब्बत, तू है मेरी जान,
गंगा-जमुनी आन-बान की तू सच्ची पहचान।

शहर-छावनी में सोया है, सदियों का इतिहास,
महाभारत से जंग-ए आज़ादी तक का अहसास,
सन सत्तावन की क्रान्ति की, तूने छेड़ी तान।

हिन्दी -उर्दू के लफ़्ज़ों में, तेरी महक समाई,
मन्त्र-अजानें-गुरूबानियाँ, तूने सदा सुनाईं,
शान्ति-अमन की परम्परा का, बना रहे सम्मान।

हर जुबान में घुली तेरे, गन्नों की ग़ज़ब मिठास,
गज़क-रेवड़ी स्वाद बिखेरें, मेरठ का वो ख़ास,
काली पलटन-घंटाघर-नौचंदी तेरी शान।

सपनों के आज़ाद परिन्दे, भर लें वो परवाज़,
देश और दुनिया में गूंजे, तेरी ही आवाज़,
कायम रहे क़यामत तक तू, इतना सा अरमान।